जीवनकुमार शाक्य
शाक्य इक्षाकु(सूर्य)वंशी क्षत्रीय हैं । जब विरुद्धकने कपिलवस्तुमे अचानक चारौ तरफसे हमला कियाथा तब वीर शाक्य सेना नायकोंने सीमित हतियारोंसे डटकर सामना कियाथा । अकेले कैयौं विरोधी सेनाओंको धराशायी बनायाथा ईतिहास है लेकिन सीमित साधन, स्रोत और अचानक भारी सेनाओंसे सामना करना पडा तो बहुतसे शाक्य सेना लगायत जनधनका क्षति लेनापडा ।
जव शाक्यों कपिलवस्तु छोड्कर यधर उधर उत्तराखण्ड बागमतीके किनारों से होतेहुवे नेपाल उपत्यकामा आएथे। उन्होंने अपनेसाथ लाया कलाकौशल था । सोनेका गहनो से अन्य धातुके अपना कला लाए थे। अरनिको ललितपुर पाटनके शाक्य परिवारके थे । भीमसेन थापा प्रधानमन्त्रीके समय नेपालके पूर्व भोजपुरके टक्सार, पश्चिमके पाल्पा तानसेनके टक्सारमे पाटनके शाक्यो ने डोली पैसामै टकमारी कर्ने गएथे । बादमे वे शाक्यों ने उधर हि टक्सार बजार बसाकर टक बनाने के साथ साथ धातुका अन्य सामान उत्पादन करने लगा ऐसे इतिहाँसमा लिखा पायाजाताहै ।
शाक्यों नेपाल उपत्यकमा आनेके बाद नेवार होगए । जैसे भारत मे मौर्य भि शाक्य कहे जातेहैं सुनाहै अभि भारतमे रहनेवाले सब भारतीय बोला जाता है । उसवक्त जो काठमाणडु नेपाल उपत्यकामे आकर बसने वाले इधरकेहि होकर बसे, वे सब नेवार हुवे । ऐसेहि भारतके बिभिन्न जगहोंपर रहकर रहनेवाले शाक्योंको दलित मानना ताज्जुबकि बात है । हमारे शाक्योंको अपनाहि एक पहचान और ईतिहास है । यसको नेपालके ईतिहासकार स्वर्गीय भुवनलाल प्रधानने "शाक्य और बुद्ध धर्म" एक मोटी किताब लिखा है । नेपालभाषामे भि शाक्यों के लिए अलग्ग सम्मानजनक शब्द प्रयोग कियाजाताहै । जो कि देवता और राजाओंको प्रयोग कियाजाताहै । जैसे शाक्यको आपको छपिं आइए को "बिज्याहुँ" कहाजाताहै तो गैर शाक्योंको "दिसं"।
सुनाजाता है कि शाक्यलोग जब कपिलवस्तुसे बिड्डुभके आक्रमणसे बचनेके लिए भागकर दक्षिण तरफ गए लोग कोहि मोर पालने कि वस्तिमे रहनेवाले मौर्य हुये कुशकि खेति करनेवालेकप जगह जानेवाले कुशवाहा हुये । ये शाक्यलोग इतन् चालाक थे कि जहाँ जात थे वहिंके तरिके से रहने लगतेथे वहि समाजमे घुलमिल जातेथे ।
शाक्य इक्षाकु(सूर्य)वंशी क्षत्रीय हैं । जब विरुद्धकने कपिलवस्तुमे अचानक चारौ तरफसे हमला कियाथा तब वीर शाक्य सेना नायकोंने सीमित हतियारोंसे डटकर सामना कियाथा । अकेले कैयौं विरोधी सेनाओंको धराशायी बनायाथा ईतिहास है लेकिन सीमित साधन, स्रोत और अचानक भारी सेनाओंसे सामना करना पडा तो बहुतसे शाक्य सेना लगायत जनधनका क्षति लेनापडा ।
जव शाक्यों कपिलवस्तु छोड्कर यधर उधर उत्तराखण्ड बागमतीके किनारों से होतेहुवे नेपाल उपत्यकामा आएथे। उन्होंने अपनेसाथ लाया कलाकौशल था । सोनेका गहनो से अन्य धातुके अपना कला लाए थे। अरनिको ललितपुर पाटनके शाक्य परिवारके थे । भीमसेन थापा प्रधानमन्त्रीके समय नेपालके पूर्व भोजपुरके टक्सार, पश्चिमके पाल्पा तानसेनके टक्सारमे पाटनके शाक्यो ने डोली पैसामै टकमारी कर्ने गएथे । बादमे वे शाक्यों ने उधर हि टक्सार बजार बसाकर टक बनाने के साथ साथ धातुका अन्य सामान उत्पादन करने लगा ऐसे इतिहाँसमा लिखा पायाजाताहै ।
शाक्यों नेपाल उपत्यकमा आनेके बाद नेवार होगए । जैसे भारत मे मौर्य भि शाक्य कहे जातेहैं सुनाहै अभि भारतमे रहनेवाले सब भारतीय बोला जाता है । उसवक्त जो काठमाणडु नेपाल उपत्यकामे आकर बसने वाले इधरकेहि होकर बसे, वे सब नेवार हुवे । ऐसेहि भारतके बिभिन्न जगहोंपर रहकर रहनेवाले शाक्योंको दलित मानना ताज्जुबकि बात है । हमारे शाक्योंको अपनाहि एक पहचान और ईतिहास है । यसको नेपालके ईतिहासकार स्वर्गीय भुवनलाल प्रधानने "शाक्य और बुद्ध धर्म" एक मोटी किताब लिखा है । नेपालभाषामे भि शाक्यों के लिए अलग्ग सम्मानजनक शब्द प्रयोग कियाजाताहै । जो कि देवता और राजाओंको प्रयोग कियाजाताहै । जैसे शाक्यको आपको छपिं आइए को "बिज्याहुँ" कहाजाताहै तो गैर शाक्योंको "दिसं"।
सुनाजाता है कि शाक्यलोग जब कपिलवस्तुसे बिड्डुभके आक्रमणसे बचनेके लिए भागकर दक्षिण तरफ गए लोग कोहि मोर पालने कि वस्तिमे रहनेवाले मौर्य हुये कुशकि खेति करनेवालेकप जगह जानेवाले कुशवाहा हुये । ये शाक्यलोग इतन् चालाक थे कि जहाँ जात थे वहिंके तरिके से रहने लगतेथे वहि समाजमे घुलमिल जातेथे ।
जो भि हो शाक्य लोग इक्षाकुशके क्षत्रीय
शाक्यवंशी हैं ।
भवतु सब्ब मङ्गलम् ।
No comments:
Post a Comment