Friday, April 13, 2012

शाक्य राज्योंका उत्थान और पतन



डा केशवमान शाक्य
अनुवादःजीवनकुमार शाक्य
कपिलवस्तु
यह कपिलवस्तु नेपालके पश्चिमी क्षेत्रके लुम्बिनी अंचलमे है। इच्छाकुवंशका कोशल राज्यका पूराना राजधानी काशी है । काशी नरेश ओक्काकि ५ रानीयाँ भृत्ता, चित्ता, जयन्ती, जालिलनी और विशाखा थि । उन लोगौंसे हुवा पत्र ओक्कामुख, करकन्द, हत्थिनिका और सिनिपुरा थि । पाँच पुत्रीयाँमे प्रिया, सुप्रिया, आनन्दा, विजिता और विजितसेनाथे ।बडी रानी ऐत्ताकि मृत्यु पश्चात राजाने दुसरी विवाह कर उनसे जनमे पुत्र जयन्तुको राजा बनानेको बेटीयोंको निकालदिया था । सबसे बडी बहन प्रिया एकको माँ कि स्थानमे रखकर और भाई बहनमे विवाह करके जन्मे सन्तानके शाक्यवंशका जन्म हि कपिलवस्तु राज्यका जन्महै कहकर ग्रन्थमे लिखा है । शाक्यमुनी बुद्धके समयमे कपिलवस्तु  गणराज्यके रुपमे विकसित होचुकि था । बौद्ध ग्रन्थोंके अध्ययन से दक्षिणमे रहे कोशल राजतन्त्र और कपीलवस्तु के बिच कुछ असमन्जस्यता दिखताहै । बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार कोशल नरेश प्रशेनजित और बुद्ध से नजदिकका मित्रों जैसा सम्बन्ध था । श्रावस्तीके महाजन अनाथपिण्डकने जेतवन बिहार दान किया था । कोशल नरेश प्रशेनजितने बुद्धके वांशज शाक्यकूलपुत्री से विवाह किए थे । विवाह करते समय कुछ धोखा हुवा शाक्य राजाकि पुत्रीकहकर महानाम के दासीको विवाह करदिया था । उनसे जन्मे कुमार विड्डुव शक्त्तीशाली राजकुमार हुवे । एक दिन वे मामाके घर कपिलवस्तुमे आएथे । दासी पुत्रीका बेटा होनेके नाते उनका अपमान हुवा वह अपनेघर लौटनेके वाद वह बैठ आसनको शुद्ध करनेके लिए दुधसे धोयागया । यह अपमान सुनकर वीड्डुभने मामाओंको बध करके उनक् खूनसे अपना आसनको धोनेका प्रतिज्ञाकर । राजा होनेके वाद कपिलवस्तुमे दो बार आक्रमण किया । दोबार बुद्ध ईस्को रोकने आएथे तिसरीबार शाक्योंका कर्मोका फल समझकर छोडदिया । फलस्वरुप कपिलवस्तुको ध्वस्त करदिया शाक्योंका सैनिक केन्द्र जाकर ९९९० शाक्योका बेरहमीसे बध करदिया । यह ह्वेनशाङ्ग के यात्रा विवरणोमे लिखा है । उसके बाद ५०० शाक्यपुत्रीयोका अपरहण करके लेगए और वीड्डुभका रानी बननेसे ईन्कार करनेके कारण उनको बध करदिया कहकर लिखा है । उसकेबाद विशाखा महा उपाशिकाने उन शाक्य कुमारीयों के स्मृतिमे एक चैत्य बनावकर स्थापनाकि थि । कपिलवस्तु ध्वस्त होनेके कुछ समयके बाद मगधके नरेश अजात शत्रुने कोशलमे हमला करके विड्डुभ और उनके मन्त्री अम्बरीसको जिन्दा जलाकर बध करदिया । कपीलवस्तु ध्वस्त होते होते शाक्यों बहुत स्थानोमे विस्थापित हुवे एक समूह कपिलवस्तुके दक्षीण तर्फ सुरक्षित हुवे उस् स्थानको पिप्पलिवन कहाजाता है यस जङ्गलमे यह शाक्यों मोर पालकर रहनेलगे और बादमे उनलोगोंको मोरीय मौर्य कहने लगा कहकर ईतिहांसविदोने लिखा है । उस स्थानको पिपरहवा भि बोलने लगा जहाँ मिला स्तुपके कारण भारत उसीको कपिलवस्तु समझनेलगा है और उसको बढीया से विकास करके लोगोंको भ्रमित करदिया है । कपिलवस्तुका सिमाना उत्तरमे हिमाल पुरव मे रोहिणी नदी पश्चीम और दक्षीण मे राप्ती नदी है कहकर कुछ किताबों मे लिखा है । और बौद्ध ग्रन्थोंमे कपिलवस्तुका सीमाना पुरवमे सदानीर पश्चीममे अचीरवती नदी पडता हा । और ह्वेनशाङ्गके यात्रा विवरणोंमे पूरवमे गण्डकी नदी पश्चीममे कर्णाली घाघरा दक्षीण मे यि दोनो नदीयोका मिलन केन्द्र बतायागया है ।


कोलीयग्राम
कोशन नरेश ओवकाकके देश निकाला हुये राजकुमार और राजकुमारीयोने कपिलवस्तु राज्य निर्माण कर्नेके बाद माँ कि हुयि बहन प्रियाको कुष्ठरोगसे ग्सित हुवा ।औरोंको भि छुने केडरसे उनको रामग्मके जङ्गलोंमे फेंक रखाथा । उसि जङ्गलमे बनारस मगधके अधिनका राम नामक राजको भि कुष्ठरोसे ग्रसित होनेके कारण वह यहां आकर रहने लगाथे । वह कोलके के पेंडके निचे रहनेके कारण ठीक होगयाथा । राजने प्रियाको देखकर वहाँ लाकर दवा करने के बाद रोगसे मुक्त्त होगयि उसकेवाद प्रेम सम्बन्ध होने कारण दोनो मे विवाह होगया । यिन लोगोंमे ३२ पुत्र पुत्रीया पैदा हुयि यिन लोगोंने देवदह अभि नेपालके नवलपरासी जिलेमे राजधानी बनाकर रामग्रामके नामसे  बस्तीको बसाकर बेटीयोंको कपिलवस्तुके शाक्यों से विवाह करदिया । कोलके पेंडके निचे पलेहुयेको कोलीय बोलने लगा । ईसप्रकार शाक्य और कोलीयका जन्म हुवा था ओर ईसी तरह मामा का लडका और फुफिका लडकिके बिच विवाह सम्बन्ध चलाहुवा है ।  शाक्यमुनी गौतम बुद्धका माता महामायाँ और प्रजापती गौतमी कोलीय राजा डण्डपाणीका बडी बहन छोटी बहन थि और राजकुमार सिद्धार्थ बुद्धकि पत्नी यशोधरा बेटी थि । विड्डुभ के हमलाके कारणसे ईन लोगोंको भि ईधर उधर भागनापडा था । देवदहका कोलीयो और कपिलवस्तुके शाक्योमे से रिस्तेदारका एक समूह नेपाल मण्डल काठमाण्डूमे आकर कोलीग्रामके नामसे बस्ती बसाया कहकर मूल सरवास्तिवाद विनयसूत्रके अनुसार बुद्धने अपने रिस्तेदारोंसे मिलने चचेरा भाई जो पिछे अपना निकटतम शिष्यथे उनको नेपाल भेजाथा ।
नेपालमे लिच्छवी कालके अन्तमे शंकराचार्यने बहुतसे ब्राम्हणोको साथ लेकर नेपाल मण्डलमे प्रवेश किया । शाशास्त्रोंके नामसे महापण्डित अमरबांडाको बध कर बैशाली नगरके बदद्ध बिहारोंको और धर्म ग्रन्थोंको जलाडाला । ईस प्कार ध्वस्त हुये प्रतिकार स्वरुप शाक्यों ने १००० ब्राम्हणोको बधकरके यिन लोगोंका जनै जमाकरके रखदिया ।
कलिङ्ग और श्रीलंका
कोशल नरेश विड्ढुवने कपिलवस्तु नष्ट करनेके वाद राजा अमृतोदन जो बुद्धके चाचाथे अपने परिवाथरके साथ मगधके नरेश अजमतशत्रुके स्थानमे शरणमे पहुंचे । बादमे उनने कलिङ्गमे जाकर राजा हुये कहकर श्रीलंकाके महावंश और दीपवंशावलीमे उल्लेख कियागया है । वंशावलीमे उल्लेख अनुसार अमृतोदनने कलिङ्गमे राज्य करते हुये राजाको हमलाकरने के वक्त राजकुमार विजय नावमे बैठकर श्रीलंका भाग गए । वंशावलीके अनुसार विजयमा माता कलिङ्गके राजकुमारी थि ।उन राजकुमारीको एक सिंहने अपहरण कियाथा यहि विजय सिंहसे जनम हुवा राजकुमार थे । जङ्गलसे भागकर आए कलीङ्गका राजा ने हि राजकुमारके रुपमे पाल रखाथा ।
श्रीलंकाके वंशावलीमे उल्लेख अनुसार शाक्यमुनी बुद्ध परिनिर्वाण होनेके बाद जम्बुद्वीपसे पिता सिंह और माता और राजकुमारीसे हुये राजकुमार विजय अपने सेना सहित भागकर श्रीलंका पहुंचेथे ।वहां हमलाबोलकर यक्षोंका राज्य छिनलिया । यहिंपर हुये यक्षणी राजकुमारी कुवेनीसे विवाह करके संहके पुत्र होनेके नाते सिंहल वंशका नामसे राज्य खडा किया । उनलोगोंका अपना सन्तान नहोनेके कारण द्छोटा भाई सुमिथके पुत्र पाण्डु बासुदेवको लाकर राज्यका उत्तराधिकारी बनाया । कलिङ्गमे शाक्य राज्य खडा करनेके बाद अमृतोदनके बाद बेटा पाण्डु शाक्यका बेटी भद्दकच्चायनि से विवाह करके भद्दकच्चायनि श्रीलंका जानेके बाद भाईयों दीर्घायू रोहण विजित और अनुराधाओंको सेथ लेगयेथे । भाईयो वहां पहुंचकर श्रीलंकामे अपनेनाम से रोहणा विजितपुरा दिघवापी और अनुराधापुर नामसे नगरका नर्माण करके बसनेलगा भद्दकच्चायनि और पाण्डु बासुदेव उपतिस्सगाम नामक स्थानसे शासनको चलाए थे । यिनके ९ बेटा एक बेटीका जन्म हुवा । बेटीका नाम चित्रा रखा लेकिन अति सुन्दरी होनेकाकरण उन्मदाचित्रा नामसे प्रशिद्ध हुयि ।ज्योतिषों ने भविष्यवाणी किया कित चित्रासे जन्मे बेटान् मामाओंको बत्र करके श्रीलंकाका राजा बनेगा ।ईस भविष्वाणीको सुनकर चित्राकि बध करनेकि बात हुयि लेकिन सबसे बडे भाई अभय जो राजा बिम्बिसारका पुत्रहै उन्होंने चित्रको लेकर कोहिभि नहोनेका जगह लेजाकर लालनपालन कर किसिसे विवाह नकरनेका प्रस्ताव रखा ।फिर सुरक्षाके लिए कालदेवल और चित्ररन्जनने पहरा दिया । उसवक्त राजकुमार दिर्घायुका बेटा दिघगामिनि दिर्घायूकाजाका राजदरबारमे खटादिएगएथे । उनसे देखते हि प्रेम होगया और उन दोनोसे लडका हुआ जिस्का नाम पाण्डुकाभय था । यह लडका युवा होनेकेबाद मामाओंको बधकरके अनुराधापुरमे राजतन्त्र स्थापित किया ।बचेहुये मामा अभय और गिरीखण्डसिव हैं । पाण्डुकाभय ने गिरीखण्डसिवका बेटी स्वर्णपाली से विवाह किये ।यिन दोनो से मुतासिव नामका बेटा हुवा मुतासिवका बेटा देवनामपिय तिस्स हैं । देवनामपिय तिस्स जब राजा थे उस वक्त भारतके राजा अशोकने बेटा महिन्द और बेटी संघमित्राके धर्मदूत मण्डल श्रीलंका पहुंचेथे । ईस प्रकार कलिङ्ग और श्रीलंकामे कपिलवस्तु से भागकर आए अमृतोदनके सन्तानोसे शाक्य राज्योंका बिस्तार हुवा था ।बादमे भारतमे बुद्ध धर्म बिरोधीयोंसे सुरक्षा करने कलिङ्गमे रहा बुद्धका दन्त कलिङ्गके राजा गुहासिवने राजकुमारदण्ड और राजकुमारी हेममालाके साथ श्रीलंका भेजा था ।उस समय श्रीलंकामे मेघवण्णने शासन सम्हालरहेथे । श्रीलंका भेजनेसे पहले उस दन्त धातुको एक बिशाल मन्दीर बनाकर पुजा कररहेथे । यहि मन्दीर आजकल पुरी कहनेवाला नगरमे रहे जगन्नाथ मन्दीर है जो पहले बौद्ध मन्दीर थे । यह पुरी कहनेवाला नगरप्राचीन कलिङ्गका राजधानी दन्तपुर है ।
चम्पा, मणीपुर, बर्मा और बंगलादेश
श्रीलंका अटावा चट्टगाम आरकन और मणिपुरमे शाक्यों जाकर शासन किएगए गोपाल बंशावलीमे उल्लेख है । आजकल बंगलादेशका चट्टगाममे चैत्यग्राममे रहतेहुये चक्माओंके उतपत्ती के बारेमे बहुतकुछ सुननेमे आता है । कलापनगर हि कपिलवस्तुका अपभ्रंश है । बर्माकि राजबंशावली अनुसार कपिलवस्तुके शाक्यवंशका राजकुमार अभिराज बुद्धकि जन्म हवनेसे पहले बहुत बर्षोंपहले ई पू ९२३ सालमे सांसारथ उत्तरआकार्नमे आकर धान्यवती नगर बनाकर राज्यका स्थापना किया था ।बर्माकि दुसरा वंशावलीमे कपलिलवस्तुके शाक्यवंशका धजराजा नामक राजा हुये थे बादमे उत्तर बर्माकि टगाव जिस्को आजकल बागान कहते हैं उस्को हमला करके जितलिया और अपना राज्य विस्तार किया । चम्पापुरके वासीयों शाक्यवंशके राजाओंके सन्तान कहाजाता है । चम्पारन अंगदेश शाक्यवंशके राजाके दो बेटे विजय गिरी और उदय गिरी हैं । बडाभाई विजय गिरी दक्षिण तरफ हमला करते हुये त्रिपुरा आर्कान और कुकि राज्यतक विजय किया था ।
पिप्पलिवन मोरीनगर मगध
सम्राट अशवकके नाना चन्द्रगुप्त मौर्य कौन वंशके हैं अनुसन्धान जारी है । बहुतसे ईतिहांसकार लोग मौर्य वंश बिड्ढुवके नरसंहारसे बचनेके लिए कपिलवस्तुसे भागकर आए और मयूर पालन कर्ने वाले गावंमे छिपकर रहे शाक्यवंशीयो हैं कहाजाता हैं । नेपालमे तराई खण्डमे रहे हुये थारु भी कपिलवस्तु से भागकर जङ्गल आवाद करके खेति करनेवाले थारुओं भि शाक्यवंशी बताएजाते हैं । बादमे उस स्थानको मोरनगर र वहां रहनेवालोंको मौर्यवंशी कहाजाने लगा ।महापरिनिब्बाण सूत्रमे बुद्धके अस्तिधातु लेने कुशिनगर आएथे और कुछ नमिलनेपर राख लेकर गए तो स्तुप बनाकर पुजा कर्ने लगा । सम्राट अशोक चन्द्रगुप्त के पोते हैं ।श्रीलंकाकि वंशावली सारथदीपनिमे राजा बिनदुसारकि रानी अशोकके माता धर्मा देवी भि शाक्यवंशी हैं कहकर लिखाहुवा है । बिन्दुसारको राज्य सौपकर भिक्षुबनकर देहावसान हुयेथे । राजा बिन्दुसार भी  आजिवकोंका शिष्य हुये लेकिन अपने अवन्ति राज्यका उपराज होते समय विवाह कियेहुये बिदीशाकि शाक्य देवीके प्रभावसे अशोक बुद्ध धर्मसे परिचित हुवा था । कलिङ्गके युद्धमे लाखोंका मृत्यु होते देखकर विरक्त्त होतेहुये अवसरपर निग्रोध श्रामरणशान्त स्वभावमे भिक्षाटन करते आया देखकर प्रभावित हुयेथे । बादमे निग्रोध श्रामेणके गुरु भिक्षु उपगुप्तके निर्देशनमे अपना साम्राज्य भरकर छिमेकि देशबिदेशोंमे धर्मदूतों भेजकर बुद्ध धर्मका प्रचार के साथसाथ बुद्धकि अस्थधातु रखकर ८४हजार स्तुपोंका निर्माण किये थे । मौर्य वंशका शासन १३७ बर्ष चला । चन्द्र गुप्तका २५बर्ष बिन्दुसारका २५बर्ष अशोकका ३५ बर्ष शासन किये । अशोकके बाद मौर्य वंशी राजा हुये कहकर बिभिन्न ग्रन्थोंमे लिखा है । बृहदरथको अपनेहि सेनाध्यक्ष पुष्यमित्रसुंगने हत्या करके राज्य हडपकर मौर्यवंशका शासन भी अन्त हुवा था । पुष्यमित्र ब्राम्हण होनेके कारण और बुद्ध धर्मका बिरोधी होनेके नात अनकौं बिहारों और स्तुपोंको ध्वस्त किया और बहुतसे बौद्धोंको बध कियाथा ।
वामियान, उड्यान, हिमतल, शाम्भि ह्वेनशांगके यात्रा बर्णानमे लिखाहुवा अनसार कपिलवस्तु राज्यमे बिड्ढुवले हमला कर्ते वक्त खेतमे कामकरहरे चार शाक्योंने देखकर रोकाथा लेकिन राज्यने उनलोगोंको उतसाहित नकरनेके कारण उनलोगोंने उत्तर हिमवन्तमे रहने लगे और चार राज्यका स्थापना किया वह राज्य वामियान, उड्यान, हिमतल और शाम्भि है । यह राज्य आजकल अफगानिस्तान (गान्धार) पाकिस्तान (काश्मीर) और चीनकि भूभागमे तुखार तक फैलाहुवा है । वामियान कहनेवाला उपत्यका अफगानिस्तानके राजधानी काबुल से २४० किमि उत्तरपश्चिममे पडता है । यह उपत्यकाकि समुद्रसतह से ९२०० फिट उंचाई पडताहै । सन् ६३०मे वामियान पहुंचे चिनीया यात्री ह्वेनशांगकि बर्णनमे यहि शीलाके भित्तोंमे प्रख्यात और बडे तीन बुद्ध तराशकर रखा है । जिस्को सन् २००१ माचर्चमे ओसामाबिन लादेन ने बिस्फोट करके ध्वस्त किया था ओर अन्त अपना भी हुवा । एक १८० फिट कि बुद्ध विश्वके सबसे उँचाईवाला सन ५४४मे निर्माण सम्पन्न हुये दिपंकर बुद्ध हैं । दुसरा ५०७ मे निर्माण हुवा १२० फिट कि शाक्यमुनी बुद्ध हैं ।
ईस प्रकार अध्ययनसे यहा पता लगताहै कि कपिलवस्तुके शाक्यों ने बहुत सी जगह जाकर अपना राज्य चलाया हुवा ईतिहाँसको झूठ नहिं कहसकते हैं । शाक्य लोग कपिलवस्तुके क्षेत्रीय राजवंशी है जहाँ गया वहां अपना राज्यका स्थापन किया । चाहे वह अशोक सम्राट हों या चन्द्रगुप्त । शाक्य दासीपुत्र बिड्ढुवभी आखिर शाक्यहि हैं । जिसने बहुतोंका बध किया । ईससे यह मालुम होताहै कि कपिलवस्तु से शक्त्तीशाली राज्य कोशल राज्य था ।
यह लेख खासकर भारतके शाक्योंको जानकारी के लिए अनुसन्धान करके लिखागया है कि शाक्य लोग कहांके हैं और क्या किस वंशके हैं । ईस अनुसन्धान से मौर्य भी शाक्य हि प्रमाण होताहैं । हिन्दी लिखनेका अनुभव नहोनेके कारणसे कहि कहिं गल्तियाँ होसकता है जिसे मिलाकर समझिएगा ।
भवतु सब्ब मङ्गलम् ।

10 comments:

  1. बहुत ही जानकारी पूर्ण पोस्ट है !! हाँलाकि मुझे शाक्य वंश के बारे मे कुछ खास नही मालूम , लेकिन फ़ेस्बुक में एक कम्यूनिटी मे इसकॊ शेऐर कर रहा हूँ जिसमॆ अधिकतर शाक्य समुदाय से ही मेम्बर हैं
    https://www.facebook.com/groups/255443594589740/

    ReplyDelete
  2. जानकारी तो हुया शाक्य वंस के बारे मे एक अच्छी लेख है !!

    ReplyDelete
  3. गोतम बुद्ध एवं उनका धम्म, दीपवम्श एवं महावम्श की पुस्तकें प्रतेक कोलीय, शाक्य, मोरिय के घर में होनी चाहिये जिससे वे यह जान सकें कि वे कौन हैं?

    ReplyDelete
  4. Virudhaka के बाद भी 3 पीढ़ियों तक का विवरण है सोमित्र को बाद में नंद वंश ने हराया था और उसी से kachwaha वंश निकला था जो जयपुर राजघराना है virudhaka ने शाक्यों का नर संहार किया था

    ReplyDelete
  5. Replies
    1. Gautam gotra hai shakyavanshi kshatriya ka

      Delete
    2. Shakya chatriy hai whi age chal ke satrawar khlaye

      Delete